राठौड़ गोत्र उत्तर भारत में निवास करने वाले एक राजपूत गोत्र हैं और राठौड़ राजपूतों की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा के राठ (रीढ़) से हुई है, और इसी कारण उन्हें “राठोड़” कहा जाता है। वे अपने को भगवान राम के कनिष्ठ पुत्र कुश के वंशज के रूप में प्रस्तुत करते हैं, इस वजह से उन्हें सूर्यवंशी कुल से ही माना जाता है। इस वंश की कर्नाट और कन्नौज राजधानियाँ मानी जाती है। संस्कृत लेखों और ग्रंथों के आधार पर, राठौड़ों को “राष्ट्रकूट” भी लिखा गया है। कहीं-कहीं इन्हें “रट्ट” या “राष्ट्रोड” भी कहा गया है। राठौड़ शब्द का प्राकृतिक रूप “राष्ट्रकूट” था, जो किसी सरकारी पद का नाम था। इन्होंने प्राचीन काल से राजस्थान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में मारवाड़ में शासन किया और उनका प्राचीन निवास स्थान कन्नौज में था। जब वे लगभग 1243 ईसा पूर्व में मारवाड़ आए, तो उन्होंने यहां अपने शासन की शुरुआत की।
राठौड़ों के मूल सेतराग जी के पुत्र राव सीहा जी थे, और मारवाड़ के राठौड़ उनके वंशज हैं। राव सीहा जी ने लगभग 700 वर्ष पूर्व द्वारिका यात्रा के दौरान मारवाड़ में आकर राठौड़ वंश की नींव रखी। वे राठौड़ गोत्र के प्रमुख पुरुष थे और राजपूत इतिहास में उनका विशेष महत्व है। राजस्थान के सभी राठौड़ गोत्र के मूल पुरुष के रूप में राव सीहा जी को माना जाता है, जिन्होंने पाली से राज की शुरुआत की और उनके बाद उनकी छतरी पाली जिले के बिटु गांव में बनाई गई है।
राव सीहा के वंशज चूण्डा ने पहले मण्डोर पर शासन किया और उनके पौत्र जोधा ने जोधपुर की स्थापना की, तथा जोधपुर को अपनी राजधानी बनाया। मुग़ल सम्राटों ने अपने युद्धों में आदि विजयों को “लाख तलवार राठोडान” कहा, क्योंकि उनकी तरफ से युद्ध के लिए पचास हजार की संख्या में तो सीहाजी के वंशज ही एकत्र हो जाते थे। युद्ध क्षेत्र में राठौड़ वंश के शासकों के द्वारा दुश्मनो का वीरता और पराक्रम के साथ सामना करने की वजह से ही उन्हें रणबंका राठौड़ भी कहा जाता है। भारत में आजादी से पूर्व जब रियासतों का विलय नहीं हुआ था तब अकेले राठौड़ो की रियासतों की संख्या दस से ज्यादा थी साथ ही कई सौ ताजमी ठिकाने भी थे जिनमे प्रमुख जोधपुर, मारवाड़, किशनगढ़, बीकानेर, ईडर, कुशलगढ़, झाबुआ, सैलाना, सीतामउ, रतलाम, मांडा, अलीराजपुर तथा पूर्व रियासतो में मेड़ता, मारोठ और गोड़वाड़ घाणेराव आदि थे।
दारु मीठी दाख री, सूरां मीठी शिकार।
सेजां मीठी कामिणी, तो रण मीठी तलवार।।
व्रजदेशा चन्दन वना, मेरुपहाडा मोड़ !
गरुड़ खंगा लंका गढा, राजकुल राठौड़ !!
दारु पीवो रण चढो, राता राखो नैण।
बैरी थारा जल मरे, सुख पावे ला सैण॥
वेद – यजुर्वेद
शाखा – दानेसरा
गोत्र – कश्यप
गुरु – श्री शुक्राचार्य
देवी – नाग्नेचिया माता
पर्वत – मरुपात
नगारा – विरद रंणबंका
हाथी – मुकना
घोड़ा – पिला (सावकर्ण/श्यामकर्ण)
घटा – तोप तम्बू
झंडा – गगनचुम्बी
साडी – नीम की
तलवार – रण कँगण
इष्टदेव – भगवान शिव
तोप – द्न्कालु
धनुष – वान्सरी
निकाश – शोणितपुर (दानापुर)
कुलदेवी के रूप में राठौड़ कुल में माता नागणेचिया जी को पूजा जाता है। सभी कार्यों में कुलदेवी माता नागणेचिया जी की आराधना आवश्यक है। कुलदेवी माता नागणेचिया जी को चक्रेश्वरी, राठेश्वरी या नागणेची नाम से भी पूजा जाता है। राजस्थान के जोधपुर जिले से करीब ९८ किलोमीटर दूर पचपदरा तहसील के नागाना गाँव में माता नागणेचिया जी का प्राचीन मंदिर स्थित है। तथा दूसरा मंदिर जोधपुर के मेहरानगढ़ किले की जननी ड्योढ़ी में है। ऐतिहासिक ग्रंथों व प्राचीन ख्यातों में वर्णित है कि मारवाड़ के राठौड़ राज्य के संस्थापक राव सिन्हा के पौत्र राव धूहड़ ने शुरुआत में नागाना गाँव में इस मंदिर में माता कि मूर्ति कि स्थापना कि थी। राव धूहड़ का शासन काल विक्रम संवत १३४९ से १३६६ माना जाता है। राठौड़ कुल के राजपूतों के द्वारा नीम के वृक्ष को काटा या जलाया नहीं जाता है जिसकी वजह गांवों में नागणेचिया जी माता का स्थान नीम के वृक्ष के निचे होना होता है।
अयोध्या में राजा सुमित्र को श्री राम के पुत्र कुश के कुल का अंतिम राजा माना जाता है। उसके बाद अयोध्या राज्य को मगध साम्राज्य में महापद्मनंद ने मिला लिया जो कि नंदवंश के राजा थे। बडुवों के द्वारा हस्तलिखित बहियों तथा ऐतिहासिक साहित्यिक स्त्रोतों से जो जानकारी मिलती है उसके अनुसार सुमित्र के उपरांत इस कुल में यशोविग्रह तक के प्रमुख शासकों के नाम कि ही लिखित जानकारी है। इन जानकारियों के आधार पर यहाँ माना जाता है कि सुमित्र के दो वशजों कूर्म व विश्वराज में कूर्म के वंशज बिहार के रोहितास से निषिध, ग्वालियर तथा नरवर होते हुए राजस्थान के आमेर में आये व यहाँ कछवाहा राजपूत वंश के रूप में राज किया। वहीँ दूसरी ओर विश्वराज के वंशज मुलराय व राष्ट्रवर के नाम से जाने गए व इनके कुल के वंशज राठौड़ कहलाये।
इस प्रकार राठौड़ वंश की बेल तरह खांपों के रूप में आगे बढ़ी, जिसकी जानकारी (सूरजवंश प्रकाश-करणीदान पृ. 84 से 194) में मिलती है।
इस वंश में धर्मविम्ब नामक एक दानी व्यक्ति हुए। उनकी दानशीलता के कारन इनके वंशज दानेश्वरा राठौड़ कहलाये। इनको कमधज नाम से भी जाना जाता था।
इस वंश में पुंज के पुत्र अमरविजय ने परमारों से युद्ध कर उन्हें हराकर कुरहगढ़ को जीता। संभवतः कुरह स्थान के नाम से ही यहाँ चली वंश वेल को कुरहा राठौड़ कहा गया।
इसी वंश में पुंज के दूसरे पुत्र भानुदीप कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) के शासक थे। देवी ज्वालामाता के द्वारा अकाल के भय से मुक्ति के वरदान के कारण उनकी वंशज अभैपुरा राठौड़ कहलाये।
इसी वंश में पुंज के तीसरे पुत्र वीरचंद हुए। वीरचंद ने भगवान शिव को अपना कपाल चढ़ा दिया था। इसी वजह से इनके वंशजों को कपालिया राठौड़ कहा गया।
तंवरों को परास्त कर जलंधर की सहायता से जल प्रवाह में बहा देने के कारण पुंज के पुत्र सजनविनोद के वंशज जलखेड़ा राठौड़ कहलाये।
बुगलाणा स्थान पर शासन करने के कारण पुंज के पुत्र पदम वंशज बुगलाणा राठौड़ कहाये गए।
पुंज के पुत्र अहर के वंशज ‘बंगाल की तरफ चले गए जो कि अहर’ राठौड़ कहलाये।
पुंज के पुत्र वासुदेव ने कन्नौज के नजदीक पारकरा नामक नगर बसाया व शासन किया इसलिए वहाँ से उसके वंशज पारकरा राठौड़ कहलाये।
दक्षिण भारत में पुंज के पुत्र उग्रप्रभ ने चंदी व चंदावर नगर बसाये इसलिए चंदी स्थान के नाम से उग्रप्रभ के वंशज चंदेल कहलाये। (ये चंदेल-चंद्रवंशी नहीं हैं।)
इस वंश में सुबुद्धि नामक एक बलवान शासक हुआ जो मुक्तामान के नाम से भी जाना जाता है। वह बड़ा वीर था इसलिए इसे वीर की उपाधि दी गई। इसी वजह से इनके वंशज वीर राठौड़ कहलाये।
इस वंश के भरत नामक शासक ने बरियावर स्थान पर राज्य किया। उस स्थान के नाम से भरत के वंशज बरियावर राठौड़ कहलाये।
कृपासिंधु (अनलकुल) खरोदा स्थान पर जाकर बसे इस वंश के वंशजों को स्थान के नाम से खरोदिया राठौड़ कहा गया।
इस कुछ के शासक चंद्र व इसके वंशज युद्धों में जय पाने के कारण जयवंशी कहलाये।
राठौड़ वंश कि तेरह खांपों में से दानेश्वरा खांप के सीहाजी राठौड़ इस वंश को राजस्थान लाये अतः यहाँ के राठौड़ इसी खांप से जाने जाते है। इस वंश में आगे चलकर जो शाखाएँ वंश बेल को आगे लेकर चली वे इस प्रकार हैं –
सीहाजी के पुत्र सोगन ने ईडर पर अधिकार कर शासन किय। अतः सोगन के वंशज ईड़रिया राठौड़ ईडर के नाम से जाने गए।
सीहाजी के पुत्र सोगन के वंशज हस्तिकुण्डी (हटूंडी) में रहे। वे हटुण्डिया राठौड़ कहलाये। जोधपुर इतिहास में ओझा लिखते है कि सीहाजी से पहले हस्तिकुण्डी (हटकुण्डी) में राष्ट्रकूट बालाप्रसाद राज करता था। उसके वंशज हटुण्डिया राठौड़ है।
सीहाजी के छोटे पुत्र अजाजी के दो पुत्र बेरावली और बिजाजी ने द्वारका के चावड़ों को बाढ़ कर (काट कर) द्वारका (ओखा मण्डल) पर अपना राज्य कायम किया।इस कारण बेरावलजी के वंशज बाढेल राठौड़ हुए। आजकल ये बाढेर राठौड़ कहलाते है। गुजरात में पोसीतरा, आरमंडा, बेट द्वारका बाढेर राठौड़ो के ठिकाने थे।
बेरावलजी के भाई बीजाजी के वंशज बाजी राठौड़ कहलाते है। गुजरात में महुआ, वडाना आदि इनके ठिकाने थे। बाजी राठौड़ आज भी गुजरात में ही बसते है।
सीहा के पुत्र आस्थान ने गुहिलों से खेड़ जीता। खेड़ नाम से आस्थान के वंशज खेड़ेचा राठौड़ कहलाते है।
आस्थान के पुत्र धुहड़ के वंशज धुहड़िया राठौड़ कहलाते है।
आस्थान के पुत्र धांधल के वंशज धांधल राठौड़ कहलाये। पाबूजी राठौड़ इसी खांप के थे। इन्होंने चारणी को दिये गये वचनानुसार पाणिग्रहण संस्कार को बीच में छोड़ चारणी की गायों को बचाने के प्रयास में शत्रु से लड़ते हुए वीर गति प्राप्त की। यही पाबूजी लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
आस्थान के पुत्र चाचक के वंशज चाचक राठौड़ कहलाये।
आस्थान के पुत्र हरखा के वंशज हरखावत राठौड़ कहलाये।
आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र जोलू के वंशज जोलू राठौड़ कहलाये।
जोपसा के पुत्र सिंघल के वंशज सिंघल राठौड़ कहलाये। ये बड़े पराक्रमी हुए। इनका जैतारण पर अधिकार था। जोधा के पुत्र सूजा ने बड़ी मुश्किल से उन्हें वहां से हटाया।
जोपसा के पुत्र ऊहड़ के वंशज ऊहड़ राठौड़ कहलाये।
जोपसा के पुत्र मूलू के वंशज मूलू राठौड़ कहलाये।
जोपसा के पुत्र बरजोर के वंशज बरजोर राठौड़ कहलाये।
जोपसा के वंशज जोरावत राठौड़ कहलाये।
जोपसा के पुत्र राकाजी के वंशज है। ये मल्लारपुर, बाराबकी, रामनगर, बडनापुर, बैहराइच (जि. रामपुर) तथा सीतापुर व अवध जिले (उ.प्र.) में हैं। बोडी, रहका, मल्लापुर, गोलिया कला, पलवारी, रामनगर, घसेड़ी, रायपुर आदि गांव (उ.प्र.) में थे।
आस्थानजी के पुत्र जोपसा के पुत्र रैका से रैकवाल हुए। नौगासा बांसवाड़ा के एक स्तम्भ लेख बैशाख वदि 1361 में मालूम होता है कि रामा पुत्र वीरम स्वर्ग सिधारा। ओझाजी ने इसी वीरम के वंशजों को बागड़िया राठौड़ माना जाता है क्योंकि बांसवाड़ा का क्षेत्र बागड़ कहलाता था।
मेवाड़ से सटा हुआ मारवाड़ की सीमा पर छप्पन गांवों का क्षेत्र छप्पन का क्षेत्र है। यहाँ के राठौड़ छप्पनिया राठौड़ कहलाये। यह खांप बागड़िया राठौड़ों से ही निकली है। उदयपुर रियासत के कणतोड़ गांव की जागीर थी।
आस्थान के पुत्र आसल के वंशज आसल राठौड़ कहलाये।
आस्थान के पुत्र जोपसा के पुत्र खीमसी के वंशज खोपसा राठौड़ कहलाये।
आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र शिवपाल के वंशज सिरवी राठौड़ कहलाये।
आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र पीथड़ के वंशज पीथड़ राठौड़ कहलाये।
आस्थान के पुत्र धुहड़ के पुत्र रायपाल हुए। रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र कोटा के वंशज कोटेचा हुए। बीकानेर जिले में करणाचण्डीवाल, हरियाणा में नाथूसरी व भूचामण्डी, पंजाब में रामसरा आदि इनके गांव है।
धुहड़ के पुत्र बहड़ के वंशज बहड़ राठौड़ कहलाये।
धुहड़ के पुत्र ऊनड़ के वंशज ऊनड़ राठौड़ कहलाये।
रायपाल के पुत्र केलण के पुत्र थांथी के पुत्र फिटक के वंशज फिटक राठौड़ हुए।
रायपाल के पुत्र सुण्डा के वंशज सुण्डा राठौड़ कहलाये।
रायपाल के पुत्र महिपाल के वंशज महीपालोत राठौड़ कहलाये।
रायपाल के पुत्र शिवराज के वंशज शिवराजोत राठौड़ कहलाये।
रायपाल के पुत्र डांगी के वंशज डांगी कहलाये। ढोलिन से शादी की अतः इनके वंशज डांगी ढोली हुए।
रायपाल के पुत्र मोहण ने एक महाजन की पुत्री से शादी की। इस कारण मोहण के वंशज मुहणोत वैश्य कहलाये। मुहणोत नैणसी इसी खांप से थे।
रायपाल के वंशज मापा के वंशज मापावत राठौड़ कहलाये।
रायपाल के वंशज लूका के वंशज लूका राठौड़ कहलाये।
रायपाल के वंशज राजक के वंशज राजक राठौड़ कहलाये।
रायपाल के पुत्र विक्रम के वंशज विक्रमायत राठौड़ कहलाये। (राजपूत वंशावली -ईश्वरसिंह मढाढ ने रादां, मूपा और बूला भी रायपाल के पुत्रों से निकली हुई खांपें मानी जाती है। )
रायपाल के पुत्र भोवण के वंशज भोवोत राठौड़ कहलाये।
रायपाल के पुत्र कानपाल हुए। कानपाल के जालण और जालण के पुत्र छाड़ा के पुत्र बांदर के वंशज बांदर राठौड़ कहलाये। घड़सीसर (बीकानेर राज्य) में बताये जाते है।
रायपाल के पुत्र ऊना के वंशज ऊना राठौड़ कहलाये।
छाड़ा के पुत्र खोखर के वंशज खोखर राठौड़ कहलाये। खोखर ने साकड़ा, सनावड़ा आदि गांवों पर अधिकार किया और खोखर गांव (बाड़मेर) बसाया। अलाउद्दीन खिलजी ने सांतल दे के समय सिवाना पर चढ़ाई की तब खोखर जी सांतल दे के पक्ष में वीरता के साथ लड़े और युद्ध में काम आये।
छाड़ा के पुत्र सिंहल के वंशज सिंहमकलोत राठौड़ कहलाये।
रावल तीड़ा के पुत्र कानड़दे के पुत्र रावल के पुत्र त्रिभवन के पुत्र उदा के ‘बीठवास’ जागीर था। अतः उदा के वंशज बीठवासिया उदावत कहलाये। उदाजी के पुत्र बीरमजी बीकानेर रियासत के साहुवे गांव से आये। जोधाजी ने उनको बीठवासिया गांव की जागीर दी। इस गांव के अतिरिक्त वेगडियो व धुनाडिया गांव भी इनकी जागीर में थे।
छांडा के पुत्र तीड़ा के पुत्र सलखा के वंशज सलखाखत राठौड़ कहलाये।
सलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज जैतमालोत राठौड़ कहलाये। ये बीकानेर रियासत में भी कहीं 2 निवास करते है।
जैतमाल सलखावत के पुत्र खेतसी के वंशज है। गांव थापणा इनकी जागीर में था।
जैतमाल के पुत्र खींवा ने राड़धडा पर अधिकार किया। अतः उनके वंशज राड़धडा स्थान के नाम से राड़धडा राठौड़ कहलाये।
सलखा राठौड़ के पुत्र मल्लीनाथ बड़े प्रसिद्ध हुए। बाढ़मेर का महेवा क्षेत्र सलखा के पिता तीड़ा के अधिकार में था। वि. सं. १४१४ में मुस्लिम सेना का आक्रमण हुआ। सलखा को कैद कर लिया गया। कैद से छुटने के बाद वि. सं. १४२२ में अपने श्वसुर राणा रूपसी पड़िहार की सहायता से महेवा को वापिस जीत लिया। वि. सं. १४३० में मुसलमानों का फिर आक्रमण हुआ। सलखा ने वीर गति पाई। सलखा के स्थान पर माला (मल्लिनाथ ) राज्य हुआ। इन्होनें मुसलमानों से सिवाना का किला जीता और अपने भाई जैतमाल को दे दिया व छोटे भाई वीरम को खेड़ की जागीर दी। नगर व भिरड़गढ़ के किले भी मल्लिनाथ ने अधिकार में किये। मल्लिनाथ शक्ति संचय कर राठौड़ राज्य का विस्तार करने और हिन्दू संस्कृति की रक्षा करने पर तुले रहे। उन्होंने मुसलमान आक्रमणों को विफल कर दिया। मल्लिनाथ और उसकी रानी रूपादे, नाथ सम्प्रदाय में दीक्षित हुए और ये दोनों सिद्ध माने गए। मल्लिनाथ के जीवनकाल में ही उनके पुत्र जगमाल को गद्दी मिल गई। जगमाल भी बड़े वीर थे। गुजरात का सुलतान तीज पर इकट्ठी हुई लड़कियों को हर ले गया तब जगमाल अपने योद्धाओं के साथ गुजरात गया और गुजरात सुलतान की पुत्री गींदोली का हरण कर लिया। तब राठौड़ों और मुसलमानों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में जगमाल ने बड़ी वीरता दिखाई। कहा जाता है कि सुलतान की बीवी को तो युद्ध में जगह जगह जगमाल ही दिखाई देता था।
इस सम्बन्ध में एक दोहा प्रसिद्ध है –
“पग पग नेजा पाडियां , पग पग पाड़ी ढाल।
बीबी पूछे खान नै , जंग किता जगमाल।।”
इसी जगमाल का महेवा पर अधिकार था। इस कारण इनके वंशज महेचा कहलाते है। महेवा राठौड़ों की खांपें इस प्रकार है:
पातावत महेचा:
जगमाल के पुत्र रावल मण्डलीक बाद क्रमशः भोजराज, बीदा, नीसल, हापा, मेघराज व पताजी हुए। इन्हीं पता के वंशज पातावत महेचा हैं।
कालावत महेचा:
मेघराज के पुत्र कल्ला के वंशज कालावत महेचा हैं।
दूतावत महेचा:
मेघराज के पुत्र दूदा के वंशज दूतावत महेचा हैं।
उगा महेचा:
वरसिंह के पुत्र उगा के वंशज उगा महेचा हैं।
मल्लीनाथ के छोटे पुत्र अरड़कमल ने बाड़मेर इलाके नाम से इनके वंशज बाढ़मेरा राठौड़ कहलाये।
मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के जिन वंशजों का पोकरण इलाके में निवास हुआ। वे पोकरण राठौड़ कहलाये।
मल्लीनाथ के पुत्र जगमाल के पुत्र भारमल हुए। भारमल के पुत्र खीमूं के पुत्र नोधक के वंशज जामनगर के दीवान रहे इनके वंशज कच्छ में है। भारमल के दूसरे पुत्र मांढण के वंशज माडवी (कच्छ) में रहते है वंशज, खाबड़ (गुजरात) इलाके के नाम से खाबड़िया राठौड़ कहलाये।
जगमाल के पुत्र कुंपा ने कोटड़ा पर अधिकार किया अतः कुंपा के वंशज कोटड़िया राठौड़ कहलाये। जगमाल के पुत्र खींवसी के वंशज भी कोटडिया राठौड़ कहलाये।
सलखा के पुत्र विराम के पुत्र गोगा के वंशज गोगादे राठौड़ कहलाते है। केतु (चार गांव) सेखला (15 गांव) खिराज आदि इनके ठिकाने थे।
बीरम के पुत्र देवराज के वंशज देवराजोत राठौड़ कहलाये। सेतरावों इनका मुख्य ठिकाना था। सुवालिया आदि भी इनके ठिकाने थे।
वीरम के पौत्र व देवराज के पुत्र चाड़दे के वंशज चाड़देवोत राठौड़ हुए। जोधपुर परगने का देछु इनका मुख्य ठिकाना था। गीलाकोर में भी इनकी जागीर थी।
वीरम के पुत्र जैतसिंह के वंशज जैसिधंदे राठौड़ हुए।
चुण्डा वीरमदेवोत के पुत्र सत्ता के वंशज सतावत राठौड़ हुए।
चुण्डा के पुत्र भींव के वंशज भींवोत राठौड़ कहलाये। खाराबेरा (जोधपुर) इनका ठिकाना था।
चुण्डा के पुत्र अरड़कमल वीर थे। राठौड़ो और भाटियों के शत्रुता के कारण शार्दूल भाटी जब कोडमदे मोहिल से शादी कर लौट रहा था, तब अरड़कमल ने रास्ते में युद्ध के लिए ललकारा और युद्ध में दोनों ही वीरता से लड़े। शार्दूल भाटी ने वीरगति पाई और कोडमदे सती हुई। अरड़कमल भी उन घावों से कुछ दिनों बाद मर गए। इस अरड़कमल के वंशज अरड़कमलोत राठौड़ कहलाये।
चुण्डा के पुत्र रणधीर के वंशज रणधीरोत राठौड़ है। फेफाना इनकी जागीर थी।
राव चुण्डा के पुत्र अर्जुन वंशज अर्जुनोत राठौड़ कहलाये।
चुण्डा के पुत्र कान्हा वंशज कानावत राठौड़ कहलाये।
चुण्डा के पुत्र पूनपाल के वंशज पूनावत राठौड़ है। गांव खुदीयास इनकी जागीर में था।
राव रणमलजी के जयेष्ठ पुत्र अखैराज थे। इनके दो पुत्र पंचायण व महाराज हुए। पंचायण के पुत्र जैतावत के नाम पर इनके वंशज जैतावत राठौड़ कहलाते है।
१.) पिरथीराजोत जैतावत:
जैताजी के पुत्र पृथ्वीराज के वंशज पिरथीराजोत जैतावत कहलाते हैं। बगड़ी (मारवाड़) व सोजत खोखरों, बाली आदि इनके ठिकाने थे।
२.) आसकरनोत जैतावत:
जैताजी के पौत्र आसकरण देइदानोत के वंशज आसकरनोत जैतावत है। मारवाड़ में थावला, आलासण, रायरो बड़ों, सदामणी, लाबोड़ी मुरढावों आदि इनके ठिकाने थे।
३.) भोपतोत जैतावत:
जैताजी के पुत्र देइदानजी भोपत के वंशज भोपतोत जैतावत कहलाते हैं। मारवाड़ में खांडों देवल, रामसिंह को गुडो आदि इनके ठिकाने थे।
राव रिड़मल के पुत्र अखैराज, इनके पुत्र पंचारण के पुत्र कला के वंशज कलावत राठौड़ कहलाते हैं। कलावत राठौड़ों के मारवाड़ में हूण व जाढ़ण दो गांवों के ठिकाने थे।
राव रणमल के पुत्र अखैराज के बाद क्रमशः पंचायत व भदा हुए। इन्हीं भदा के वंशज भदावत राठौड़ कहलाये। देछु (जालौर) के पास तथा खाबल व गुडा (सोजत के पास) इनके मुख्य ठिकाने थे।
मण्डौर के रणमलजी के पुत्र अखैराज के दो पुत्र पंचायत व महाराज हुए। महाराज के पुत्र कूंपा के वंशज कूँपावत राठौड़ कहलाये। मारवाड़ का राज्य जमाने में कूंपा व पंचायण के पुत्र जैता का महत्वपूर्ण योगदान रहा था। चित्तौड़ से बनवीर को हटाने में भी कूंपा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। मालदेव ने वीरम को जब मेड़ता से हटाना चाहा, कूंपा ने मालदेव का पूर्ण साथ देकर इन्होंने अपना पूर्ण योगदान दिया। मालदेव ने वीरम से डीडवाना छीना तो कूंपा को डीडवाना मिला। मालदेव की १५९८ वि. में बीकानेर विजय करने में कूंपा की महत्वपूर्ण भूमिका थी। शेरशाह ने जब मालदेव पर आक्रमण किया और मालदेव को अपने सरदारों पर अविश्वास हुआ तो उन्होंने साथियों सहित युद्धभूमि छोड़ दी परन्तु जैता व कूंपा कहा धरती हमारे बाप दादाओं के शौर्य से प्राप्त हुई हैं हम जीवित रहते उसे जाने न देंगे। दोनों वीरों ने शेरशाह की सेना से टक्कर ली और अद्भुत शौर्य दिखाते हुए मातृभूमि की रक्षार्थ बलिदान हो गए। उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर शेरशाह के मुख से ये शब्द निकल पड़े “मैंने मुट्ठी भर बाजरे के लिए दिल्ली सल्तनत खो दी होती।” इस प्रकार अनेक युद्धों में आसोप के कूँपावतों ने वीरता दिखाई। कूँपावत राठौड़ों की खांपें इस प्रकार है:
महेशदासोत कूँपावत:
वि. सं. १६४१ में बादशाह अकबर ने सिरोही के राजा सुरतान को दण्ड देने मोटे राजा उदयसिंह को भेजा। इस युद्ध में महेशदास के पुत्र शार्दूलसिंह ने अद्भुत पराक्रम दिखाया और वही रणखेत रहे। अतः उनके वंशज भावसिंह को १७०२ वि. में कटवालिया के अलावा सिरयारी बड़ी भी उनका ठिकाना था। एक एक गांव के भी इनके काफी ठिकाने थे।
ईश्वरदासोत कूँपावत:
कूंपा के पुत्र ईश्वरदास के वंशज ईश्वरदासोत कूँपावत कहलाये। इनका मुख्य ठिकाना चण्डावल था।
माण्डणोत कूँपावत:
कूँपाजी के बड़े पुत्र मांडण के वंशज माण्डणोत कूँपावत कहे जाते है। इनका मुख्य ठिकाना चन्देलाव था।
जोधसिंहोत कूँपावत:
कूँपाजी के बाद क्रमशः मांडण,खीवकण,किशनसिंह,मुकन्दसिंह,जैतसिंह,रामसिंह व सरदारसिंह हुए। सरदारसिंह के पुत्र जोधसिंह ने महाराजा अभयसिंह जोधपुर की तरफ से अहमदाबाद के युद्ध में अच्छी वीरता दिखाई। महाराजा ने जोधसिंह को गारासांण खेड़ा,झबरक्या और कुम्भारा इनायत किया। इनके वंशज जोधासिंहोत कूँपावत कहलाते हैं।
उदयसिंहोत कूँपावत:
कूँपाजी के चौथे पुत्र उदयसिंह के वंशज उदयसिंहोत कूँपावत कहलाते हैं। उदयसिंह के वंशज छत्रसिंह को वि. १८३१ में बूसी का ठिकाना (परगना गोड़वाड़) मिला। वि. सं. १७१५ के धरमत के युद्ध में उदयसिंह के वंशज कल्याणसिंह घोड़ा आगे बढ़ाकर तलवारों की रीढ़ के ऊपर घुसे और वीरता दिखाते हुए काम आये। यह कुरब बापसाहब का ठिकाना था। चेलावास,मलसा,बावड़ी,हापत,सीहास,रढावाल,मोड़ी आदि छोटे ठिकाने थे।
तिलोकसिंहोत कूँपावत:
कूंपा के सबसे छोटे पुत्र तिलोकसिंह के वंशज तिलोकसिंहोत कूँपावत कहलाते हैं। तिलोकसिंह ने सूरसिंहजी जोधपुर की तरफ से किशनगढ़ के युद्ध में वीरगति प्राप्त की। इस कारण तिलोकसिंह के पुत्र भीमसिंह को घलणा का ठिकाना सूरसिंह जोधपुर ने वि. १६५४ में इनायत किया।
राव रिड़मल के पुत्र जोधा के वंशज जोधा राठौड़ कहलाये। राव जोधा जी का जन्म २८ मार्च, १४१६, तदनुसार भादवा बदी ८ सं. १४७२ में हुआ था। इनके पिता राव रणमल मारवाड़ के शासक थे। इन्हें जोधपुर शहर की स्थापना के लिए जाना जाता है। इन्होंने ही जोधपुर का मेहरानगढ़ दुर्ग बनवाया था।
जोधपुर नरेश सूजाजी के एक पुत्र उदाजी थे। इन्होंने १५३९ वि. में सींधल खीवा से जैतारण विजय किया। इनके वंशज उदावत राठौड़ कहलाते हैं। राव उदा जी ने १५३९ विक्रमी में सिंधल खीवा से जेतारण विजय किया। राव उदा के छः पुत्र थे –
राव मालमसिंह जी : मालमसिंह के वंशजों के लोटती, गलगिया आदि ठिकाने थे ।
राव डूंगरसिंह जी : डूंगर सिंह हरमाड़े स्थल पर राणा उदयसिंह व हाजीखां के बीच युद्ध में हाजी खां के पक्ष में लड़ते हुए काम आये ।
राव नेतसी जी : तीसरे पुत्र नेतसी के वंशजों के अधिकार में बाछीमाड़ा, रायपुर आदि ठिकाने थे ।
राव जैतसी जी : चौथे पुत्र जेतसी के वंशज छीपिया नाबेड़ा में है
राव खेतसी जी : पांचवे पुत्र खेतसी के वंशज बोयल गाँव के अधिकारी थे ।
खींवकरण जी : छठे पुत्र खींवकरण थे। इनके पुत्र रतनसिंह, मालसिंह ( जेतारण ) गोद चले गए । खिंवकरण बड़े वीर थे सुमेल के युद्ध में शेरशाह के विरुद्ध लड़ते हुए काम आये ।
उदावत राठौड़ो के प्रमुख ठिकाने:
उदावत राठौड़ों के बड़े ठिकानों में 01 – ठिकाना रायपुर (21 गाँव) 02 – नीमाज (9 गाँव) 03 – रास (14 गाँव) 04 – लाबिया (6 गाँव) 07 – गुदवच (6 गाँव) प्रमुख थे।
बीका जोधपुर के राव जोधा का पुत्र था। जोधा का बड़ा पुत्र नीबा जोधा की हाडी राणी जसमादे के पुत्र थे। वे पिता को विद्यमानता में ही मर गए थे। जसमादे के दो पुत्र सांतल व सुजा थे। बीका सांतल से बड़े थे। पितृ भक्ति के कारण उन्होंने अपने चाचा कांधल के साथ होकर जांगल प्रदेश पर अधिकार कर नया राज्य स्थापित कर लिया था और सांतल को जोधपुर की गद्दी मिलने पर कोई एतराज नहीं किया। इन्हीं बीका के वंशज बीका राठौड़ कहलाते हैं।
बीदावत राठौड़ जोधपुर के राठौड़ राव जोधा के पुत्र बीदा के वंश हैं। राव बीदा ने भाई राव बीका और चाचा रावत कांधल की सहायता से मोहिलों को पराजित करके बीदावाटी प्रदेश बसाया जहाँ बीदा के वंशधर बीदावत राठौड़ कहलाये।
बीदा ने अपने जीवन काल में बड़े पुत्र उदयकरण को द्रोणपुर और संसारचन्द्र को पड़िहार दिया । उदयकरण के पुत्र कल्याणदास द्वारा लूणकरण बीकानेर का विरोध करने के कारण द्रोणपुर से कल्याणदास का अधिकार हट गया । बीदा की सम्पूर्ण भूमि पर संसारचन्द्र के पुत्र सांगा का अधिकार हो गया। सांगा के पुत्र गोपालदास के पुत्रों से बीदावतों की कई खांपों की उत्पत्ति हुई।
जोधपुर के शासक जोधा के पुत्र दूदाजी के वंशज मेड़ता नगर के नाम से मेड़तिया कहलाये। राव दूदा जी का जन्म राव जोधा जी की सोनगरी राणी चाम्पा के गर्भ से १५ जूंन १४४० को हुआ । राव दूदा जी ने मेड़ता नगर बसाया । इसमें उनके भाई राव बरसिँह जी का भी साथ था। राव बरसिँह जी व राव दूदा जी ने सांख्लों (परमार ) से चौकड़ी ,कोसाणा आदि जीते । राव बीकाजी जी द्वारा सारंगखां के विरुद्ध किये गये युद्ध में राव दूदा जी ने अद्भुत वीरता दिखाई । मल्लूखां ( सांभर का हाकिम ) ने जब मेड़ता पर अधिकार कर लिया था । राव दूदा जी, राव सांतल जी, राव सूजा जी, राव बरसिँह जी, बीसलपुर पहुंचे और मल्लूखां को पराजित किया । मल्लूखां ने राव बरसिँह जी को अजमेर में जहर दे दिया जिससे राव बरसिँह जी की म्रत्यु हो गयी उनका पुत्र सीहा गद्धी पर बेठ और इसके बाद मेड़ता राव दूदा जी और सीहा में बंटकर आधा – आधा रह गया ।
राव दूदा जी के पांच पुत्र थे – (01) वीरमदेव – मेड़ता (02) रायमल – खानवा के युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए । (03) रायसल (04) रतनसिंह – कूड़की ठिकाने के स्वामी, खानवा के युद्ध में वीरगति प्राप्त हुए । (05) पंचायण मीराबाई रतन सिंह की पुत्री थी । रतनसिंह कूड़की ठिकाने के स्वामी थे ।
राव दूदा जी के पुत्र वीरमदेव ईसवी १५१५ में मेड़ता की गद्धी पर बैठे । इनका जन्म १९ नवम्बर १४७७ को हुआ । १७ मार्च खानवा में बाबर व् सांगा के बीच हुए युद्ध में वीरमदेव ने राणा सांगा का साथ दिया । राणा सांगा की मूर्छित अवस्था के समय वे भी घायल थे । इस युद्ध में उनके भाई रायमल व् रतनसिंह भी मुगल सेना से लड़ते हुए वीरगति प्राप्त हुए । जोधपुर के राजा मालदेव मेड़ता पर अधिकार करना चाहते थे । वीरमदेव ने 1536 ईस्वी में अजमेर पर भी अधिकार कर लिया था । मालदेव ने अजमेर लेना चाहा पर वीरमदेव ने नहीं दिया तब मालदेव ने मेड़ता पर आक्रमण कर दिया । मालदेव का मेड़ता पर अधिकार हो गया । कुछ समय बाद मालदेव का अजमेर पर भी अधिकार हो गया । तब वीरमदेव रायमल अमरसर के पास चलेगए । वीरमदेव आपने राज्य मेड़ता पर पुनः अधिकार करना चाहते थे अतः वीरमदेव रणथम्भोर की नवाब की मदद से शेरशाह के पास पहुँच गए । और मालदेव पर आक्रमण करने के लिए शेरशाह को तेयार किया । बीकानेर के राव कल्याणमल भी मालदेव द्वारा बीकानेर छीन लेने के कारन मालदेव के विरुद्ध थे । उन्होंने भी शेरशाह का साथ दिया । शेरशाह को बड़ी सेना लेकर जोधपुर की तरह बढ़ा और विक्रमी संवत १६०० ईस्वी १५४४ में अजमेर के पास सुमेल स्थान पर युद्ध हुआ । मालदेव पहले ही मैदान छोड़ चुका था । जैता और कुम्पा शेरशाह के सामने डटे रहे परन्तु मालदेव की सेना को पराजीत होना पड़ा । इस युद्ध के बाद वीरमदेव ने मेड़ता पर पुनः अधिकार कर लिया ।
वीरमदेव के 10 पुत्र थे । (01) जयमल – बदनोर (चितोड़) (02) ईशरदास (03) करण (04) जगमाल (05) चांदा (06) बीका – बीका के पुत्र बलू को बापरी सोजत चार गाँव मिला (07) पृथ्वीराज – इनके वंशज मेड़ता में रहे (08) प्रतापसिंह (09) सारंगदे (10) मांडण ।
राव रिड़मल के पुत्र चांपाजी थे। चांपाजी ने वि.सं. १५२२ में सुल्तान महमूद खिलजी के साथ युद्ध किया था। वि.सं. १५३६ में मणियारी के पास सीधलों के साथ युद्ध हुआ जिसमें चांपा वीरगति को प्राप्त हुए।
इन्हीं चांपा के वंशधर चांपावत राठौड़ कहलाये। इनके मारवाड़ में काफी ताजीमी ठिकाने थे। जयपुर राज्य में गीजगढ़, नायला, गौनेर और काणूता मेवाड़ ने कथरिया, मालोल व गोरडियो तथा कोटा में सारथल। ग्वालियर राज्य में वागली तथा ईडर राज्य में टिटोई चांदनी व मोई चाम्पावतों के ठिकाने थे।
राव रिड़मल के पुत्र मण्डलाजी ने वि. सं. १५२२ में सारूंडा (बीकानेर राज्य) पर अधिकार कर लिया था। यह इनका मुख्य ठिकाना था। इन्हीं मण्डला के वंशज मण्डलावत राठौड़ है।
बाला राठौड़ – राव रिड़मल (रणमल) के पुत्र भाखरसी के वंशज भाखरोत राठौड़ कहलाये। इनके पुत्र बाला बड़े बहादुर थे। इन्होनें कई युद्धों में वीरता का परिचय दिया। चित्तौड़ के पास कपासण में राठौड़ों और शीशोदियों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में बाला घायल हुए। सिंघलों से वि. सं. १५३६ में जोधपुर का युद्ध मणियारी नामक स्थान हुआ। इस युद्ध में चांपाजी मारे गए। बाला ने सिंघलो को भगाकर अपने काकाजी का बदला लिया। इन्हीं बाला के वंशज बाला राठौड़ कहलाये। मोकलसर (सिवाना) नीलवाणों (जालौर) माण्डवला (जालौर) इनके ताजमी ठिकाने थे। ऐलाणों, ओडवाणों, सीवाज आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।
राव रिड़मल के पुत्र पाता भी बड़े वीर थे। वि. सं. १४९५ में कपासण (चित्तौड़ के पास) स्थान पर शीशोदियों व राठौड़ों में युद्ध हुआ। इस युद्ध में पाताजी वीरगति को प्राप्त हुआ। इनके पातावत राठौड़ कहलाये। पातावतों के आऊ (फलौदी- ४ गांव) करण (जोधपुर) पलोणा (फलौदी) ताजीम के ठिकाने थे। इनके अलावा अजाखर, आवलो, केरलो, केणसर, खारियों (मेड़ता) खारियों (फलौदी) घंटियाली, चिमाणी, चोटोलो, पलीणो, पीपासर भगुआने श्री बालाजी, मयाकोर, माडवालो, मिठ्ठियों भूंडासर, बाड़ी, रणीसीसर, लाडियो, लूणो, लुबासर, सेवड़ी आदि छोटे छोटे ठिकाने जोधपुर रियासत में थे।
राव रिड़मल के पुत्र रूपा ने बीका का उस समय साथ दिया जब वे जांगल देश पर अधिकार रहे थे। इन्हीं रूपा के वंशज रूपावत राठौड़ हुए। मारवाड़ में इनका चाखू एक ताजीमी ठिकाना था। दूसरा ताजीमी ठिकाना भादला (बीकानेर राज्य) था। इनके अतिरिक्त ऊदट (फलौदी) कलवाणी (नागौर) भेड़ (फलौदी) मूंजासर (फलौदी) मारवाड़ में तथा सोभाणो, उदासर आदि बीकानेर राज्य के छोटे छोटे ठिकाने थे।
राव रिड़मल के पुत्र करण के वंशज करणोत राठौड़ कहलाये। इसी वंश में दुर्गादास (आसकरणोत) हुए। जिन पर आज भी सारा राजस्थान गर्व करता है। अनेकों कष्ट सहकर इन्होनें मातृभूमि की इज्जत रखी। अपनी स्वामिभक्ति के लिए ये इतिहास में प्रसिद्ध रहे है।
राव रिड़मल के पुत्र मांडण के वंशज माण्डणोत राठौड़ कहलाते हैं। मारवाड़ में अलाय इनका ताजीमी ठिकाना था। इनके अतिरिक्त गठीलासर, गडरियो, गोरन्टो, रोहिणी, हिंगवाणिया आदि इनके छोटे छोटे ठिकाने थे।
नाथा राव रिड़मल के पुत्र थे। राव चूंडा नागौर के युद्ध में भाटी केलण के हाथों मारे गए। नाथाजी ने अपने दादा का बेर केलण के पुत्र अक्का को मार कर लिया। इन्हीं नाथा के वंशज नाथोत राठौड़ कहलाते हैं। पहले चानी इनका ठिकाना था।नाथूसर गांव इनकी जागीर में था।
राव रिड़मल के पुत्र सांडा के वंशज सांडावत राठौड़ कहलाते हैं।
राव रिड़मल के पुत्र बेरा के वंशज बेरावत राठौड़ कहलाते हैं। दूधवड़ इनका गांव था।
राव रिड़मल के पुत्र अडवाल के वंशज अडवाल राठौड़ कहलाते हैं। ये मेड़ता के गांव आछोजाई में रहे। राव रिड़मल के पुत्र :
राव रिड़मल के पुत्र जगमाल के पुत्र खेतसी के वंशज खेतसिंहोत राठौड़ कहलाते हैं। इनको नेतड़ा गांव मिला था।
राव रिड़मल के पुत्र लखा के वंशज लखावत राठौड़ कहलाते हैं।
राव रिड़मल के पुत्र डूंगरसी के वंशज डूंगरोज राठौड़ कहलाते हैं। डूंगरसी को भाद्रजूण मिला था।
राव रिड़मल के पौत्र भोजराज जैतमालोत के वंशज भोजाराजोत राठौड़ कहलाते हैं। इन्हें पलसणी गांव मिला था। (राव रिड़मल के पुत्र हापा, सगता, गोयन्द, कर्मचंद और उदा के वंशजों की जानकारी उपलब्ध नहीं। उदा के वंशज बीकानेर के उदासर आदि गांव में सुने जाते हैं )
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