रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को भारत के कर्नाटक राज्य के कित्तूर नामक स्थान पर हुआ था। वह एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सैनानी और महिला साम्राज्ञी थीं, जिन्होंने अपने दृढ़ संकल्प और बहादुरी के साथ ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया।
रानी चेन्नम्मा का परिवार एक प्राचीन और माननीय राजवंश से संबंधित था। उनका जन्म हुआ तो उन्हें एक बलिदानी स्वरुपिणी बनने का मौका मिला। १५ साल की उम्र में उन्होंने कित्तूर के राजा मल्लसर्जा देसाई से विवाह किया। जब १८१६ में पति मल्लसर्जा व १८२४ में पुत्र का देहांत हुआ तो, उन्होंने कित्तूर की सिंघनी बनकर संग्राम का नेतृत्व किया। तब रानी चेन्नम्मा के सामने एक कठिन चुनौती थी। उन्हें या तो राजवंश को जारी रखने के लिए एक उत्तराधिकारी को गोद लेना था, या फिर ब्रिटिश कंपनी के सामने हार माननी पड़ती। उन्होंने पहले विकल्प को चुना। 1824 में, उन्होंने एक छोटे से लड़के को गोद लिया, जिसका नाम शिवलिंगप्पा था, लेकिन इससे इंडिया कंपनी को उनके खिलाफ गुस्सा आ गया।
रानी चेन्नम्मा का ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष 1824 में आरंभ हुआ, जब उन्होंने ब्रिटिश कंपनी के आक्रमण का सामना किया। उन्होंने अपने सैन्य के साथ संघर्ष किया और ब्रिटिश कंपनी के लिए बड़ी चुनौतियों का सामना किया।
रानी चेन्नम्मा के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक उनकी महाराष्ट्र के पेशवा बाजीराव पेशवा के साथ मिलकर किया गया संघर्ष था। इस संघर्ष में वे ब्रिटिश कंपनी के खिलाफ संग्राम का नेतृत्व करती रहीं और कित्तूर के लिए स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रखीं।
कित्तूर के राज्य को एक रियासत के रूप में न खोने की इच्छा से, उन्होंने ब्रिटिश कंपनी के खिलाफ चुनौती दी। उन्होंने 21 अक्टूबर 1824 को एक हमले का सामना किया, जिसमें उनके पास 20,000 सैनिक और 400 बंदूकें थीं। वे एक बार में उन्हें संभाल लिया, लेकिन उनका दूसरा प्रयास असफल रहा, और उन्हें बैलहोंगल किले में जीवनकाल के लिए कैद कर लिया गया।
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने ब्रिटिश कंपनी के खिलाफ अपनी आत्मा की आजादी के लिए लड़ते हुए 1829 में अपनी शौर्यगाथा का अंत किया। उन्होंने ब्रिटिश कंपनी के साथ हुए विद्रोह में अपनी जान दी।
रानी चेन्नम्मा का योगदान स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण है, और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण योद्धा के रूप में याद किया जाता है। उनकी वीरता, साहस और आत्मा की प्रतिष्ठा आज भी हमारे देश के इतिहास में दीप्ति बिखेरती हैं।
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