रानी अच्छन कुमारी – Rani Acchan Kumari – Great Rajput Women

Rani Acchan Kumari

चन्द्रावती के राजा जैतसिंह की पुत्री अच्छन कुमारी ने पृथ्वी राज चौहान की वीरता और दृढ़ निश्चयता पर मुग्ध हो उन्हें पति रूप में स्वीकार कर लिया था । चन्द्रावती एक छोटी-सी रियासत थी । उसके पिता जैतसिंह को अपनी पुत्री के मन की बात जब ज्ञात हुई तो उन्होंने अच्छन कुमारी को अपनी आशंका व्यक्त करते हुए कहा – “बेटी, तुम्हारा निर्णय तो अच्छा है, मैं इससे सहमत हूँ, पर यदि पृथ्वीराज ने यह रिश्ता स्वीकार नहीं किया तो क्या होगा ?”

वीर बाला अच्छन कुमारी ने तुरन्त जवाब दिया- “पिताजी, आपकी यह आशंका व्यर्थ है । मुझे पूरा विश्वास है कि वे यदि सच्चे राजपूत हैं तो एक राजपूत कन्या की बात कभी अस्वीकार नहीं करेंगे और कर भी देंगे तो आप निश्चिन्त रहिए, मुझे अपना कर्त्तव्य मालूम है । मैं आजन्म कुमारी रह सकती हूं पर अन्य किसी के साथ मेरा अब सम्बन्ध होना असम्भव है । राजपूत कन्या जिसे एक बार अपना पति स्वीकार कर लेती है, वही उसका वरेण्य है ।

इसी बीच गुजरात के राजा भीमदेव ने राजकुमारी अच्छन के साथ विवाह करने का प्रस्ताव भेजा । अच्छन के पिता ने कहलवाया कि “उसकी मंगनी पृथ्वीराज से हो चुकी है अतः उसका विवाह पृथ्वीराज से हो होगा।” भीमदेव ने इसे अपमान समझा और उस पर आक्रमण कर दिया। जैतसिंह ने अजमेर के शासक पृथ्वीराज के पिता राजा सोमेश्वर से सहायता मांगी। सोमेश्वर स्वयं उस समय दो विकट परिस्थितियों से घिर गये । उनके सम्मुख एक प्रश्न म्लेच्छों को दूर कर देश-रक्षा का था तो दूसरी ओर अपनी पुत्र वधू की मान रक्षा का । अपने प्रधान सेनापति को यवन आक्रान्ताओं से लड़ने हेतु भेजा ओर स्वयं भीमदेव से युद्ध करने हेतु चन्द्रावती की ओर प्रस्थान किया। अपने पुत्र पृथ्वीराज को अच्छन कुमारी से विवाह करने का आदेश देकर स्वयं राजपूत कन्या के मान की रक्षा करने भीमदेव से युद्ध करते हुए वे वीरगति को प्राप्त हुए ।

अपने पिता के आदेशानुसार और अच्छन कुमारी की मान की रक्षा करने के लिये पृथ्वीराज ने उससे अचलगढ़ के किले में विवाह की रस्म सम्पन्न की। पिता की मृत्यु के उपरान्त पृथ्वीराज अपने पिता की राज्य गद्दी पर बैठता है । वह भी अपने पिता की भांति देश की रक्षा के लिए सदैव यवन आक्रान्ताओं से जूझने को तत्पर रहा। मोहम्मद गौरी को 17 बार परास्त कर उसने अपने शौर्य और वीरत्व का जो अद्भुत प्रदर्शन किया, वह आज भी स्मरणीय है ।

सत्रह बार गौरी को परास्त कर अव पृथ्वीराज निश्चिन्त हो गया था कि वह फिर इधर थाने की हिम्मत तक नहीं कर सकता । परन्तु संयोगिता को लेकर कन्नोज के शासक जयचन्द से उसका मन- मुटाव हो गया। घर की फूट बहुत बुरी होती है । जयचन्द की प्रेरणा से गौरी एक बार फिर पृथ्वीराज पर आक्रमण करता है। और इस बार पृथ्वीराज की युद्ध में पराजय होती है, उसे कैद कर लिया जाता है।

पृथ्वीराज के कैद किये जाने की सूचना सेनापति द्वारा जब अच्छन कुमारी को मिलती है तो वह क्रोधित होकर उसे फटकारते हुए कहती है–“सेनापति ! तुम कैसे सेनापति हो। तुम्हारे होते तुम्हारे स्वामी शत्रु द्वारा कैद कर लिये और तुम असहाय की भांति चुपचाप देखते रहे और अब क्या यह खुशखबरी सुनाने लौटे हो । युद्ध के मैदान से तुम परास्त होकर वापिस लौट आये । मैं देखती हूं किसकी मजाल है जो महाराज को कैद में रक्खे । ”

इतना कह वह युद्ध के लिए तैयार हुई। हाथ में नंगी तलवार लिये, घोड़े पर सवार हो, तत्काल रण भूमि में पहुँचकर यवनों से संघर्ष किया। अपने पति को कैद से मुक्त कराने के प्रयास में स्वयं युद्ध करती हुई वीरगति को प्राप्त हुई । उस स्वाभिमानी नारी के लिए पति को कैदी के रूप में देखना असह्य था । उसने हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर राजपूत नारी के वीरोचित गुण का परिचय दिया ।

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