नीलदेवी नूरपुर (पंजाब) के राजा सूरजदेव की रानी, संगीत और नृत्य विद्या में पारंगत थी। अब्दुलशरीफ खां नामक आक्रान्ता ने नूरपुर पर आक्रमण किया। राजा सूरजदेव ने उसका दृढ़ता से मुकाबला किया। उसे जब सफलता नहीं मिली तो सन्धि करने के बहाने बुलाकर राजा सूरजदेव को कैद कर पिंजरे में डाल दिया और राजकुमार सोमदेव को सन्देश भेजा कि “नूरपुर का राज्य मेरे हवाले कर दो वारना तुम्हारे पिता के शरीर की बोटी-बोटी अलग कर दी जाएगी।”
इस समाचार से राजपूतों में हलचल मच गयी। सोमदेव ने पिता को मुक्त करने हेतु युद्ध को अन्तिम उपाय बताया और इसके लिए तैयार हुआ परन्तु उसकी माता ने उसे रोका और कहा –“दुष्ट की दुष्टता से ही निपटना ठीक रहता है।” नीलदेवी ने एक तरकीब सोची। वह नृत्यांगना (नाचने वाली) का भेष धारण कर साजिंदों के भेष में चार राजपूत सैनिकों को लेकर अशरफ खां के खेमे में पहुंची। अशरफ खां महफ़िल जमाकर मदिरापान कर रहा था, ऐसे अवसर पर नृत्यांगना का आगमन उसे भला लगा। रानी नीलदेवी के नृत्य और संगीत से अशरफ और उसके अंगरक्षक मदमस्त हो कर प्याले पर प्याला शराब का डाले जा रहे थे, पास ही पिंजरे में कैद सूरजदेव यह सब देखकर हैरान था। उसे अपनी रानी के पतिव्रत धर्म पर सन्देह हुआ।
नाच समाप्त होने पर ज्योंही अशरफ खां कामुक हो उसे इनाम देने को झूमता हुआ आगे बढ़ा नीलदेवी ने चोली में छिपायी कटार निकालकर उसके सीने में झोंक दी। नीलदेवी का संकेत पाते ही साजिंदों के भेष में आये राजपूत सैनिक भी संभल गये और शीघ्र ही राजा सूरजदेव को पिंजरे से बाहर निकाल कैद मुक्त किया। दुश्मन के खेमे में खलबली मच गयी। उधर सोमदेव ने भी उस पर धावा बोल दिया। रानी नीलदेवी पति के साथ अशरफ के खेमे से बाहर निकलने ही वाली थी कि राजा सूरजदेव पर एक शत्रु सैनिक ने पीछे से वार कर उनकी हत्या कर डाली। युद्ध में सोमदेव विजयी हुआ। नीलदेवी ने पुत्र का राजतिलक किया और स्वयं पतिव्रत धर्म का पालन करते हुए अपने पति के साथ सती हुई।
नूरपुर की रानी नीलदेवी ने जिस प्रकार कटार से अपने अपमान का बदला लिया था, वह यहाँ के इतिहास का सुनहरा पन्ना है।
डा.विक्रमसिंह राठौड़,गुन्दोज
राजस्थानी शोध संस्थान, चोपासनी, जोधपुर
Note: प्रकाशित चित्र प्रतीकात्मक है
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