History of Jewish (Yĕhūdhī) and Reason Behind Israel Palestine Conflict

Jerusalem

इजराइल और गाज़ा में चल रहा युद्ध अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है। दुनिया में अभी सबसे चर्चित मुद्दा यही युद्ध है। साथ ही लोगो के मन में इस युद्ध को लेकर काफी जिज्ञासाएं भी है, जैसे की इस युद्ध को शुरू होने में अधिकतर लोगो को यही लगता है कि जिस प्रकार भारत में पिछले छह – सात दशकों से जिस प्रकार इस्लामिक आतंकियों के प्रहार होते रहे है वैसे ही इजराइल ने भी हमास जैसे इस्लामिक आतंकी संगठन के हमले के जवाब में ये युद्ध छेड़ा है। लेकिन बहुत काम लोग ही जानते है कि आखिर इस युद्ध के पीछे की असली वजह क्या है।

इस युद्ध का कारण सिर्फ एक मुल्क एक देश की जमींन पर कब्ज़ा करना नहीं बल्कि इसके पीछे है एक धार्मिक एक जातीय मुद्दा। जी हाँ, जिस प्रकार भारत पाकिस्तान के सभी मसलों का एक ही कारण है हिन्दू – मुस्लिम धर्म के बीच अपने हक़ की लड़ाई वैसे ही इजराइल और फलीस्तीन के बीच भी अपने हक़ का टकराव है। इन सबको जानने के लिए हमे सबसे पहले फलीस्तीनी मुस्लिम और इजराइली यहूदी कौम को समझना जरुरी है। हालाँकि इजराइल में सिर्फ मुस्लिम, यहूदी ही नहीं बल्कि ईसाई धर्म के लोगों का भी अपना मुद्दा है अपने हक़ अपने धर्म से जुडी प्राचीन जमीं का। लेकिन ईसाई और यहूदी दोनों धर्मो को वहाँ से हटाने की मुस्लिम धर्म की कवायद हजारों सालों से चलती आ रही है। आज का मुद्दा सिर्फ मुस्लिम और यहूदी धर्म से जुड़ा है।

इन सब बातों को समझने के लिए पहले हमे वहाँ के इतिहास को समझना होगा, यहूदी, मुस्लिम और ईसाई धर्म के इजराइल पर अपने अधिकारों को समझना होगा।

आज से 4000 हजार साल पहले दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में जाने जाने वाले यहूदी धर्म की शुरुआत इजराइल की धरती पर येरुशलम से हुई। इस धर्म की शुरुआत पैगम्बर अब्राहम ने की थी। उनके तीन बेटे थे एक का नाम आइजैक और दूसरे बेटे का नाम याकूब (जैकब) था जिसे इस्राइल के नाम से भी जाना जाता है कहा जाता है की इसी के नाम पर इनके राज्य (देश) का नाम इजराइल रखा गया। पैगम्बर अब्राहम के तीसरे बेटे का नाम यहूदा था जिसके नाम पर इनके वंशजों के धर्म को यहूदी धर्म के नाम से जाना गया। यहूदियों की भाषा हिब्रू थी और धर्म ग्रन्थ तनख़ है।

शुरुआत में यहूदी लोगो के रहने की जगह येरुशलम और युदा नामक इलाकों में थी। लेकिन यहूदियों को अपना देश छोड़ना पड़ा जिसका कारण था ७०० ईसा पूर्व (आज से २७२३ वर्ष पहले) असीरियाई साम्राज्य का हमला। इस हमले में यहूदियों के १० कबीले अपने आप को येरुशलम में काबिज नहीं रख पाए और ये कबीले तीतर बितर हो गये। इसके बाद फिर से ७२ ईसा पूर्व (२०९५ वर्ष पूर्व ) फिर से उन्हें हमले का सामना करना पड़ा लेकिन इस बार हमला करने वाला था रोमन साम्राज्य। ये हमला इतना खतरनाक था कि यहूदियों को येरुशलम छोड़ना पड़ गया और दुनिया में जिस देश में जगह मिली वहाँ उन्हें शरणार्थियों की तरह भागकर जाना पड़ा। रोमन साम्राज्य के इस हमले को “एक्जोडस” के नाम से जाना जाता है। इस हमले में यहूदियों के सेकंड मंदिर को तोड़ दिया गया जिसका निर्माण पहले मंदिर के टूटने के बाद किया गया था। लेकिन इस हमले के बाद इस मंदिर की एक दीवार शेष बची जहाँ आज भी येरुशलम में यहूदी प्रार्थना करने के लिए आते है। इसे “वेस्टर्न वॉल” के नाम से जाना जाता है और ये दीवार यहूदियों के लिए पवित्र मानी जाती है।

एक्जोडस हमले के बाद रोमन्स ने यहूदियों को बदनाम करने के लिए दुनिया भर में माहौल पैदा किया जिससे यहूदी धर्म के लोगो के प्रति दुनियाभर के लोगों में नफरत फ़ैल गई। जिसे “एंटी-सेमिटिज़म” के नाम से जाना जाता है। जिसका मतलब होता है कि जो भी लोग हिब्रू भाषा बोलने वाले थे उनके प्रति दुनियाभर में लोगो में नफरत फ़ैल गई और यहूदियों को सबसे शातिर और चालाक लोगो के रूप में प्रचारित किया गया। यह कहा गया कि यहूदी किसी के साथ भी अच्छा नहीं करते। इसके चलते लोग उन्हें अपमानित करने लगे उन पर तरह तरह के जुल्म किये जाने लगे। येरुशलम से जाने वाले अधिकतर यहूदी लोग यूरोप और अमेरिका में जाकर बसे थे। इन देशों में यहूदी लोगो के रहने पर तरह तरह की शर्ते व नियम लागु कर दिए गए उन्हें अपनी पहचान बताना जरुरी कर दिया गया जिससे उनके बारे में सभी को पता हो सके। कई यूरोपीय देशों में सेनाओं में भर्ती होने वाले यहूदियों को अपनी वर्दी पर एक अलग तरह का स्टार लगाना जरुरी था जिससे उनकी पहचान हो सके। इस स्टार को “डेविड स्टार” कहा जाता था। यदि कोई यहूदी अपनी पहचान को छुपाता था तो उसे सजा देने का भी प्रावधान था।

लगातार जुल्म और अपमान सह रहे यहूदियों में धीरे धीरे अपने अलग देश की मांग उठने लगी। तब तक यहूदी लोगों में से कुछ लोग अपनी मेहनत और लगन के दम पर अमेरिका और यूरोपीय देशों में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए थे और उन्होंने अपने व्यापार को ऊंचाई पर पहुंचा दिया था। उनके पास पैसा आ गया था। इसलिए यहूदी लोगों ने मिलकर १८९७ में स्विट्ज़रलैंड में “वर्ल्ड जायनिस्ट कांग्रेस” नामक संस्था का गठन किया। हिब्रू भाषा में जायनिस्ट का मतलब होता है स्वर्ग। इस संस्था को दुनियाभर के यहूदियों ने चंदा देना शुरू किया।

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान २ नवम्बर १९१७ को ब्रिटैन और यहूदियों के मध्य बालफोर समझौता हुआ। इस समझौते के अनुसार यदि यहूदी ब्रिटैन को ऑटोमन साम्राज्य (टर्की) जो कि १५१७ से फलीस्तीन पर आसीन था, को हारने में मदद करते है तो ब्रिटैन फलीस्तीन में यहूदियों के लिए अलग से स्वतंत्र देश बना देगा। इसके तहत ब्रिटैन के यहूदियों को वहाँ बसाया जाना था। इस प्रकिया को “आलिया” नाम से जाना जाता है। इसमें यहूदियों को येरुशलम में बसाया गया था। १९१८ के समय ऑटोमन साम्राज्य (टर्की) कमजोर पड़ गया और उन पर ब्रिटैन का कब्ज़ा हो गया। १९२० में ब्रिटैन ने “लीग ऑफ़ नेशन” के द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया जिसमे फलीस्तीन में यहूदियों की मातृभूमि बनाने की मांग थी। ये प्रस्ताव १९२३ से लागू हो गया था। इसके तहत यहाँ यहूदियों को लेकर बसाया जाने लगा।

द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर ने यूरोपियन देशों में रहने वाले यहूदियों पर अत्याचार किये। उसने ६० लाख यहूदियों कि हत्या करवा दी। जर्मनी और आस पास के देशों में यहूदियों का नरसंहार किया गया। जिसके कारण यूरोपियन देशों से भी यहूदी येरुशलम पहुंच कर यहाँ बसने लगे। द्वितीय विश्व युद्ध में सहे नरसंहार और अत्याचारों के कारण दुनिया की संवेदनाएं यहूदी समाज के लिए जागने लगी। इसी के चलते १९४७ में संयुक्त राष्ट्र संघ ने यहूदियों की मांग को मानते हुए उनके लिए एक स्वतंत्र देश इजराइल बनाया।

१९४७ ने ब्रिटेन ने एक प्रस्ताव पास किया जिसके तहत फलीस्तीन को दो टुकड़ों में बांटने की बात कही गई। जिसमे एक हिस्सा फलीस्तीनी अरब स्टेट का तथा दूसरा हिस्सा यहूदियों का यहूदी स्टेट इजराइल होगा। साथ ही इसमें एक शर्त रखी गई की येरुशलम को स्पेशल स्टेटस देकर अन्तर्राष्ट्रीय टेरिटरी में रखा जायेगा। तथा इसकी निगरानी यूनाइटेड नेशंस करेगा क्यूंकि येरुशलम में ईसाई, मुस्लिम और यहूदी तीनों के पवित्र स्थान है। जो कि उनकी अपनी अपनी धार्मिक मान्यताओं से जुड़े है। इस प्रस्ताव को इजराइल ने स्वीकार किया लेकिन कट्टरपंथी फलीस्तीनियों ने इसे स्वीकार नहीं किया।

मई १९४८ में इजराइल स्वतंत्र राष्ट्र घोषित हुआ और ब्रिटैन वहाँ से चला गया। ब्रिटैन के जाते ही अरब देशों ने एक जुट होकर फिर से वहाँ कब्ज़ा करने की कोशिश की और जार्डन, इराक, सीरिया, लेबनॉन और मिश्र ने मिलकर इजराइल पर हमला कर दिया। लेकिन तब तक इजराइल ने अपनी सेना बना ली थी और उसने सभी पाँचों देशों को हरा दिया।

विवाद का धार्मिक कारण

येरुशलम का ३५ एकड़ का एक जमीं का टुकड़ा इस पुरे विवाद का कारण है। जहाँ ईसाई, मुस्लिम और यहूदी तीनों के पवित्र स्थान है और ये अपना अपना अधिकार जताते रहे है। येरुशलम शहर के मध्य एक पहाड़ी इलाके जिसे टेम्पल माउन्ट कहा जाता है वह यहूदियों और मुस्लिम समुदाय के द्वारा अपने पवित्र स्थल कहे जाते है। यही पर यहूदियों के पवित्र मंदिर की बची हुई दिवार है जिसे वेस्टर्न वॉल कहा जाता है। तथा यही पर मुस्लिम समुदाय का डॉम ऑफ़ रॉक तथा अल अक्सा मस्जिद है जो मुस्लिम समुदाय के लिए पवित्र स्थल है। मुस्लिम्स का मानना है की उनके पैगम्बर मोहम्मद मक्का से येरुशलम आये और यहीं से जन्नत गए थे। वही कुछ दुरी पर ईसाईयों का पवित्र स्थल भी है जहाँ ईसा मसीह को क्रॉस पर लटकाया गया था इसी वजह से यह स्थान ईसाईयों के लिए भी पवित्र माना जाता है।

जबकि माना जाये तो यहाँ सबसे पुराना धर्म यहूदी ही है और उनके द्वारा अपने अधिकारों के लिए अपने ऊपर होने वाले मुस्लिम आतंकी संगठनों के हमलों का जवाब देना कहीं से भी गलत नहीं ठहराया जा सकता। दूसरे धर्मों के लोगों के मात्र वहां आने से उनका अधिकार कही से भी साबित नहीं होता है।