किसी समय डीडवाने में डोड राजपूतों का राज्य था। पाबू राठौड़ के बड़े भाई वूडा का विवाह डीडवाने के जिस डोड राजपूत कन्या से हुआ उसका नाम गेहली था। डोड शाखा की राजपूत होने के कारण डोड गेहली कहलाती थी। जींदराव खीची से युद्ध करते हुए पाबू राठौड़ और बुडा राठौड़ दोनों वीरगति को प्राप्त हुए । अपने पति बूडा के युद्ध में मारे जाने के बाद पतिपरायणा डोड गेहली गर्भवती होते हुए भी सती होने को तैयार हुई। लोगों ने उसे समझाया कि तुम गर्भवती हो, पेट में तुम्हारे सात माह का बच्चा है, अतः तुम सती नहीं हो सकती ।
गर्भवती का सती होना धर्म वर्जित समझा गया है और यहां इसकी पालना भली प्रकार से होती रही है । डोड गेहली को धर्मानुसार एवं पूर्व की सती परम्परा को ध्यान में रखते हुए जब सती होने से रोकने की कोशिश की तो उसने सोचा- “मैं सिर्फ गर्भवती होने के कारण पति के साथ सती होने से वंचित हो रही हूं।” पति के बिना एक क्षण भी जीवित रहना उसने व्यर्थ समझा। पति के साथ सती होने को डोड गेहली इतनी उत्सुक थी कि उसने स्वयं ने कटारी से अपना पेट चीरकर सात माह के बच्चे को बाहर निकाला । अपने बच्चे को धाय को सुपुर्द किया । पेट चीर कर निकाले गये उस बच्चे का नाम झरड़ा रखा गया । झरड़ा बड़ा सिद्ध और वीर पुरुष हुआ । डोड गेहली के पुत्र इसी झरड़े ने जींदराव खीची को मारकर अपने पिता और चाचा की मृत्यु का वैर लिया ।
अपने गर्भस्थ शिशु को स्वयं ने पेट चीर कर बाहर निकाला और पति परायणा डोड गेहली अपने पति के साथ सती हुई । राजपूत नारी के वीरत्व भरे ऐसे अदभुत उदाहरण क्या अन्यत्र कहीं देखे जा सकते हैं ? राजपूत नारी के सचमुच कितने विचित्र, अनोखे, त्याग, शौर्य और बलिदान भरे किस्से हैं, जो बेजोड़ हैं ।
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