ब्रह्मावर्त देश के अधिपति महाराज स्वायम्भुव मनु की लावण्यमयी पुत्री देवहूति बड़ी गुणशीला थी । देवहूति की माता का नाम शतरूपा था । भारतवर्ष के सम्राट महाराज मनु की पुत्री देवहूति का बचपन राजवैभव और ऐश्वर्य के वातावरण में बीता । फिर भी राजकुमारी देवहूति इसके प्रति आसक्त नहीं थी । देवहूति को त्याग, तपस्या और सादगीपूर्ण जीवन बहुत प्रिय था । धर्मज्ञ मनु की पुत्री का धर्म के प्रति अनुराग होना स्वाभाविक ही था । महाराजा मनु के सात्विक और धार्मिक विचारों का संभवत: देवहूति पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और इसी के परिणाम स्वरुप सांसारिक सुखों के प्रति वह आकृष्ट नहीं हुई । उसने आत्म कल्याण का मार्ग अपनाया ।
एक सम्राट की राजकुमारी के लिए किसी प्रकार का कोई अभाव न था । उसकी हर इच्छा की पूर्ति तत्काल हो जाती थी, केवल इच्छा जाहिर करने की देर थी । वह चाहती तो अपने लिए योग्य और ऐश्वर्यशाली पति के साथ विवाह कर सुख से अपना जीवन बिता सकती थी । मनुष्य तो क्या कई गंधर्व, नाग, यक्ष और देवता भी उस अप्रतिम रूपवान राजकुमारी से विवाह करने को लालायित थे परन्तु देवहूति ने अपने लिए किसी देवता या पराक्रमी राजा की बजाय तपस्वी को पति चुना ।
जीवन के शास्वत सत्य की पहचान देवहूति को हो चुकी थी । देवहुति का मानना था कि — “यह मनुष्य जीवन भोग विलास के लिए नहीं मिला है । मानव-भोगों से स्वर्ग का भोग उत्कृष्ट माना गया है किन्तु वह भी चिरस्थायी नहीं है, अन्त में दुःख देने वाला है । मोक्ष-साधक एक शारीर को विशयभोगों में लगाकर जर्जर बनाना भारी भूल है । सांसारिक ऐश्वर्य चिर सुखदायी नहीं हुआ करता । मनुष्य को चिर सुख प्राप्ति का प्रयास करना चाहिए और यह चिर-सुख भगवद प्राप्ति से ही संभव है । यही देहधारियों की शाश्वत सिद्धि है जिससे ममता, मोह, आसक्ति, और जन्म-मरण के बन्धनों से जीव मुक्त हो जाता है । आत्म कल्याण ही जीवन का चिर उद्देश्य है”।
ऐसे उच्च विचार रखने वाली क्षत्रिय बाला देवहूति अन्य राजकुमारियों से भिन्न व्यक्तित्व रखती थी । वैराग्य ज्ञान की पिपासु और आत्मज्ञान की उस साधिका ने महर्षि कर्दम को पति रूप में स्वीकारा । देवहूति के गर्भ से नौं कन्याएं उत्पन्न हुई जिनमे सती अनसूया (महर्षि अत्रि की पत्नी ) और सती अरुन्धती (महर्षि वशिष्ठ की पत्नी) भी शामिल है ।
देवहूति के गर्भ से भगवान कपिल ने अवतार ग्रहण किया और अपने पिता कर्दम को उपदेश दिया । भगवान कपिल द्वारा योग, ज्ञान, भक्ति और सांख्यमत माता देवहूति को बतलाया गया और इस मार्ग का अनुसरण करते हुए देवहूति ने परमानन्द नित्यमुक्त श्रीभगवान को प्राप्त कर अपने जीवन का चरम लक्ष्य प्राप्त किया ।
देवी देवहुति भारतवर्ष की महान विभूति थी । उनके आत्मकल्याण और वैराग्ययुक्त वचनों व विचारों ने सदियों तक यहाँ के लोगों प्रभावित किया । अनेक ऋषि-मुनियों ने इन तथ्यपरक बातों का आलोडन-विलोडन कर स्मृति, पुराण इत्यादि धर्म ग्रंथों में आत्मकल्याण के लिए जो उपदेश दिए उससे यहाँ की जनता लाभान्वित होती रही और आज भी वे उपदेश उपयोगी और हितकारी माने जाते है । देवहूति की भारतीय आध्यात्म जगत में तो महत्वपूर्ण देन है ही, भारतीय संस्कृति के शास्वत तत्वों के निर्माण में जो उसकी महती भूमिका रही है वह भी अविस्मरनीय है ।
By: [googleplusauthor]
Mr. Gagan Singh Shekhawat is a renowned online marketer with an exceptional caliber. With extensive experience in internet marketing, Mr. Singh always wanted to unfold the majestic and mystical glory of India and share it with others across the world. And, here the foundation of ‘Our Society’ took place. Our society is the brain child of Mr. Gagan Singh Shekhawat. Whether it is social, cultural, political, and historical or anything else, we’ve not left any stone unturned. I strongly believe that blogging can do wonder and therefore, i came up with unique concept of ‘Our Society’ to help you unveiling the magnificent glory of India.
हंसाबाई मंडोर के राव चूंडा की पुत्री थी । राव रणमल जो चूंडा का पाटवी…
राजस्थान के मारवाड़ राज्य में आलणियावास ग्राम के ठाकुर विजयसिंह की धर्मपत्नी बजरंग दे कछवाही…
अजबदे स्वतन्त्रता प्रेमी, स्वाभिमानी वीरवर महाराणा प्रताप की रानी थी। तत्कालीन अन्य रियासतों के राजा…
चन्द्रावती के राजा जैतसिंह की पुत्री अच्छन कुमारी ने पृथ्वी राज चौहान की वीरता और…
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी रावल समरसिंह के बाद उसका पुत्र रत्नसिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठा…
आज रविवार दिनांक २१ जुलाई २०२४ को जयपुर की क्षत्राणियों ने एक ऐतिहासिक आयोजन किया।…