राजस्थान के मारवाड़ राज्य में आलणियावास ग्राम के ठाकुर विजयसिंह की धर्मपत्नी बजरंग दे कछवाही बड़ी वीर राजपूत महिला थी। यह उस समय की बात है जब दिल्ली पर मुगल बादशाह औरंगजेब राज्य कर रहा था । जोधपुर के महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम की मृत्यु के पश्चात् मारवाड़ पर मुगल प्राधिपत्य स्थापित हो गया था । दुर्गादास राठौड़ महाराजा जसवन्तसिंह प्रथम के नाबालिग पुत्र अजीतसिंह की रक्षा और मारवाड़ राज्य की स्वतन्त्रता के कार्य में जुटा हुआ था ।
वीरांगना बजरंग दे कछवाही उस युग में भी मुगल प्रातंक से नहीं घबरायी और अपने पति ठाकुर विजयसिंह की मृत्यु के पश्चात् ठिकाने का सारा भार अपने कंधों पर ले लिया । बजरंग दे मर्दानी पोशाक धारण कर ठिकाने का सारा काम स्वयं देखती थी । घोड़े पर सवारी करना और शस्त्र चलाने में भी वह प्रवीण थी । आलणियावास ठिकाने की बड़ी सतर्कता से चौकसी और राज-काज सम्बन्धी सारे कार्य कुशलता से संचालित कर अपनी योग्यता की धाक जमा चुकी थी ।
बजरंग दे बहुत ही स्वाभिमानी राजपूत नारी थी । उसने अपने पति की मृत्यु के पश्चात् आलणियावास ठिकाने की रेख (एक प्रकार का टेक्स, कर) चाकरी भरना बन्द कर दिया । अजीतसिंह जब मार- वाड़ का शासक बना उस समय भी दुर्गादास राठौड़ उसके राज्य को स्थायित्व प्रदान करने में पूर्ण निष्ठा के साथ लगा हुआ था । स्वामीभक्त दुर्गादास ने राज्य की आमदनी में वृद्धि हेतु प्रालणिया- वास ठिकाने की बन्द रेख को फिर से प्रारम्भ कराने का प्रयास किया । इस सम्बन्ध में बजरंग दे को लिखा गया पर उसने रेख भरने से साफ इन्कार कर दिया । दुर्गादास ने उसे भयाक्रान्त करने हेतु सैन्यशक्ति का उपयोग किया पर बजरंग दे कब पीछे हटने वाली थी । रीयां की नदी में दुर्गादास की सेना से मुकाबला करने वह युद्ध के मैदान में कूद पड़ी । उसके शौर्य और कुशल सैन्य संचालन के कारण दुर्गादास जैसे वीर को भी पीछे हटना पड़ा “दोय कोस दोरी दुरगेस” । ठकुरानीसा बजरंग दे की विजय हुई ।
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