सौभाग्यकुंवरी जोधपुर के महाराजा तखतसिंह की पुत्री है। राजकुमारी सौभाग्यकुंवरी का विवाह बून्दी के राजा रघुवीरसिंह के साथ हुआ । सौभाग्यकुंवरी काव्यरचना में बचपन से ही रुचि रखती थी और भगवद् भक्ति में उसकी पूर्ण आस्था थी । राम के साथ कृष्ण की भी वह अनन्य भाव से सेवा पूजा करती है । राम-स्नेही संप्रदाय के संत भावनदास उसके गुरु है । गुरु महिमा के पद सौभाग्यकुंवरी ने रचे । इसके साथ ही कृष्ण लीला और निगुण भक्ति के पदों की भी रचना की । राजस्थानी भाषा में लिखे हुये इसके पद विविध राग रागनियों में मिलते हैं ।
सौभाग्यकुंवरी द्वारा रचित एक पद —
प्यारी लागै म्हानै राज री मरोर
सौभाग्य बिहारी बनड़ो चित चोर ।
केसरिया सिर पेच कलंगी, जामो जरकस कोर ।
अघर धरी मुरली मनमोहन, ठाढ़ौ नन्द किसोर ॥
दरस करत सुर नर मुनि मोहे, सुन मुरली की सोर ।
गोपी ग्वाल बाल चहूं दिस ते, निरखत नन्द किसोर ॥
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