महाराणा प्रताप का जीवन चक्र अनेक प्रकार की कठिनाइयों से शुरू होकर कठिनाइयों पर ही ख़त्म होता है। एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी जीवनी हमें सिर्फ और सिर्फ संघर्ष के आगे अडिग होकर साहस के साथ कठिनाइयों से संघर्ष करना सिखाती है, उसके लिए चाहे कितने ही बलिदान क्यों न देने पड़े। साहस, राष्ट्रप्रेम, त्याग और बलिदान का सम्पूर्ण ग्रन्थ है महाराणा प्रताप की जीवनी।
महाराणा प्रताप के पिता : महाराणा उदय सिंह
महाराणा प्रताप की माता : महारानी जयवंती देवी
महाराणा प्रताप का जन्म : कुम्भलगढ़ में, ज्येष्ठा शुक्ला तृतीया वि सं 1597 (९ मई 1540)
महाराणा प्रताप की धर्मपत्नी : मामरख पंवार की पुत्री अजबांदे देवी
महाराणा प्रताप का पुत्र : अमर सिंह
अमर सिंह का जन्म : चित्तौड़गढ़ में १६ मार्च १५५९ ईस्वीं में
तृतीय जौहर : चित्तोड़ का तृतीय जौहर २५ फरवरी १५६८ ईस्वीं में
महाराणा प्रताप का राजतिलक : २८ फरवरी १५७२ ईस्वीं को महाराणा उदय सिंह की मृत्यु होने पर महाराणा प्रताप का राजतिलक किया गया जोकि होली का दिन था।
नवम्बर १५७२ ईस्वीं : जलाल खां कोरची के द्वारा प्रताप को प्रथम संधि का प्रयास किया गया
जून १५७३ ईस्वीं : आमेर के राजा मानसिंह का द्वितीय संधि प्रयास किया गया
सितम्बर १५७३ ईस्वीं : भगवंतदास द्वारा तृतीय संधि का प्रयास किया गया
दिसंबर १५७३ ईस्वीं : टोडरमल द्वारा चतुर्थ संधि का प्रयास किया गया
मार्च १५७६ ईस्वीं : अकबर द्वारा महाराणा प्रताप पर आक्रमण की योजना बनाई गई
३ अप्रैल १५७६ ईस्वीं : अकबर के सेनापति मानसिंह का अजमेर से कूच
१८ जून १५७६ ईस्वीं : हल्दीघाटी युद्ध प्रारम्भ हुआ
सितम्बर १५७६ ईस्वीं : मुग़ल सेना का मेवाड़ से पलायन हुआ (हल्दीघाटी युद्ध समाप्त हुआ तथा मुग़लों के कब्जे वाले भू – भाग पर महाराणा प्रताप का पुनः आधिपत्य स्थापित हुआ
११ अक्टूबर १५७६ ईस्वीं : अकबर स्वयं मेवाड़ अभियान पर आया
दिसम्बर १५७६ ईस्वीं : अकबर का मेवाड़ अभियान से पलायन हुआ तथा सभी क्षेत्रों पर महाराणा प्रताप का पुनः आधिपत्य स्थापित हुआ
१५ अक्टूबर १५७७ ईस्वीं : शाहबाज़ खान का पहला आक्रमण हुआ
१७ जून १५७८ ईस्वीं : शाहबाज़ खान का पलायन हुआ
सितम्बर १५७८ ईस्वीं : महाराणा प्रताप का आवरगढ़ पर निवास, वहां भामाशाह द्वारा धन समर्पण किया गया
१५ दिसंबर १५७८ ईस्वीं : शाहबाज़ खान का दूसरा आक्रमण हुआ
१५ नवम्बर १५७९ ईस्वीं : शाहबाज़ खान का तीसरा आक्रमण हुआ
१५८० ईस्वीं : अब्दुल रहीम खानखाना का सैनिक अभियान
१५८१ ईस्वीं : महाराणा प्रताप ने अब्दुल रहीम खानखाना के परिवार को लौटाया और खानखाना मेवाड़ से लौट गया
१५८२ ईस्वीं (विजयदशमी): दिवेर विजय किया गया तथा अकबर के चाचा सुल्तान खान को मारा गया
१५८३ ईस्वीं : डूंगरपुर – बांसवाड़ा तथा छप्पन के इलाकों पर भी महाराणा प्रताप की विजय व सम्पूर्ण मेवाड़ स्वतंत्र हुआ
५ दिसंबर १५८४ ईस्वीं : जगन्नाथ कच्छवाहा द्वारा आक्रमण व असफल होकर लौटना
१५८५ ईस्वीं : महाराणा प्रताप द्वारा नई राजधानी चावंड की स्थापना करना व राज्य की स्थिति को सुदृढ़ करना
१५८५ ईस्वीं से १५९६ ईस्वीं : महाराणा प्रताप द्वारा पुनः मेवाड़ को अपने अधिकार में लेकर पुनर्निर्माण के प्रयास करना, राजधानी चावंड में कला, साहित्य व शिल्प का विकास करना
१९ जनवरी १५९७ ईस्वीं : महाराणा प्रताप का चावंड में देहावसान, माघ शुक्ल एकादशी, वि सं १६५३
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