३१ मई १७२५ में जन्मी अहिल्याबाई आनन्दराव सिंधिया (मनकोजी) की होनहार पुत्री थी। नीति निपुण, धर्मज्ञ व न्यायप्रिय तथा शीलवती अहल्याबाई विभिन्न गुणों से सम्पन्न थी । इसका विवाह मल्हारराव होल्कर के पत्र खांडेराव के साथ हुआ । खांडेराव इन्दौर का शासक था और अहिल्याबाई इन्दौर की महारानी बनी। गुणसम्पन्ना अहिल्याबाई अपने नित्यकार्य के अतिरिक्त राज्य प्रबन्ध के कार्यों में भी अपने पति को पूर्ण सहयोग प्रदान करती थी। अभी उसके दाम्पत्य जीवन के केवल नौ वर्ष ही बीते थे कि खांडेराव का स्वर्गवास हो गया। उसने पति के साथ सती होना चाहा पर सास श्वसुर ने अपने दो छोटे बच्चों (एक पुत्र व एक पुत्री) के पालन हेतु उसे ऐसा करने से रोका। विधवा होने के समय अहिल्याबाई की अवस्था केवल बीस या बाईस वर्ष की ही थी पर इसकी वीरता और कार्य दक्षता पर उसके श्वसुर मल्हारराव होल्कर को पूरा भरोसा था । सन् 1761 में पानीपत के युद्ध के पश्चात् मल्हारराव ने इन्दौर का राज्य-प्रबन्ध पूरी तरह अपनी पुत्रवधू अहिल्याबाई को ही सौंप दिया ।
मल्हारराव की मृत्यु के पश्चात् अहिल्याबाई का पुत्र मालेराव इन्दौर का शासक हुआ और अहिल्याबाई राजमहिषी । मालेराव राजमहिषी अहिल्याबाई की शालीनता और सद्व्यवहार के बिलकुल विपरीत स्वभाव का था । मालेराव अधिक समय तक जीवित नहीं रहा, उसके पश्चात् अहिल्याबाई ने ही इन्दौर राज्य का शासन प्रबंध अपने हाथ में लिया । अहिल्याबाई द्वारा शासन की बागडोर हाथ में लिये जाने का सबसे अधिक विरोध मल्हारराव के मुख्यमन्त्री गंगाधर यशवन्त ने किया । गंगाधर यशवन्त का कहना था कि विधवा अहिल्याबाई के स्थान पर कुल में से किसी को गोद लेकर राज्यगद्दी पर बिठाया जाय। अहिल्याबाई ने गंगाधर यशवंत के उस प्रस्ताव को यह कहकर अमान्य कर दिया कि ‘मैं राज्यगद्दी के दो अधिकारियों की रिश्तेदार हूँ – एक की पत्नी और दूसरे की माता । मुझे राज्य प्रबन्ध का अनुभव है, मुझे किसी को गोद लेने की आवश्यकता नहीं, मैं स्वयं राज्य प्रबंध करूगी।”
असन्तुष्ट गंगाधर यशवंत ने पेशवा के सेनापति रघुनाथराव को भड़काकर इन्दौर से अहिल्याबाई को निकालकर उसका राज्य हड़पने की योजना बनाई। अहिल्याबाई इससे भयभीत नहीं हुई। इन्दौर की राजमहिषी ने गायकवाड़ और भौसले की सहायता प्राप्त कर पेशवा के सेनापति से युद्ध करने आ डटी। अहिल्याबाई को अबला समझकर रधुनाथराव ने इन्दौर पर आक्रमण की योजना बनायी थी। जब उस वीरांगना को प्रतिरोध के लिए उपस्थित देखा तो राजमहिषी अहिल्याबाई को यह संदेश भेजकर लौट गया कि “मैं तो केवल यह देखना चाहता था कि शत्रु से तुम अपनी रक्षा करने में सक्षम भी हो या नहीं।” अहिल्याबाई इन्दौर की शासिका बनी। उसने गंगाधर यशवंत को भी माफ कर अपनी क्षमाशीलता का परिचय दिया ।
सद्गुण सम्पन्न इस वीर नारी ने बहुत ही योग्यता से लगभग 30 वर्ष तक इन्दौर राज्य का संचालन किया। उसके राज्य में चारों ओर अमन चैन था । राज्य की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ थी। खजाने में करोड़ों रुपये जमा थे और दान-धर्म तथा पुण्य कार्यों में भी उसने बहुत-सी राशि खर्च की । धर्म में उसकी गहरी आस्था थी। हिन्दुस्तान के प्रसिद्ध तीर्थ स्थानों जैसे रामेश्वरम्, केदारनाथ, काशी-विश्वनाथ, प्रयाग, जगन्नाथ, द्वारका आदि में मन्दिर बनवाकर वहां सदाव्रत बांटना प्रारम्भ करवाया । राज्य की सुरक्षा की दृष्टि से जहां उसने विभिन्न गढ़ कोट इत्यादि बनवाये वहीं सार्वजनिक हित के लिए सड़कें, कुऐं, बावड़ियां व धर्मशालाएँ बनवायीं । ७० वर्ष की उम्र में १३ अगस्त १७९५ में उनका निधन इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ। विभिन्न कष्टों का दृढ़ता से मुकाबला करते हुए महारानी अहिल्याबाई ने जनहित और देश-हित के अनेक कार्य किये उसकी कीर्ति आज भी अमर है।
डा.विक्रमसिंह राठौड़,गुन्दोज
राजस्थानी शोध संस्थान, चोपासनी, जोधपुर
Mr. Gagan Singh Shekhawat is a renowned online marketer with an exceptional caliber. With extensive experience in internet marketing, Mr. Singh always wanted to unfold the majestic and mystical glory of India and share it with others across the world. And, here the foundation of ‘Our Society’ took place. Our society is the brain child of Mr. Gagan Singh Shekhawat. Whether it is social, cultural, political, and historical or anything else, we’ve not left any stone unturned. I strongly believe that blogging can do wonder and therefore, i came up with unique concept of ‘Our Society’ to help you unveiling the magnificent glory of India.
हंसाबाई मंडोर के राव चूंडा की पुत्री थी । राव रणमल जो चूंडा का पाटवी…
राजस्थान के मारवाड़ राज्य में आलणियावास ग्राम के ठाकुर विजयसिंह की धर्मपत्नी बजरंग दे कछवाही…
अजबदे स्वतन्त्रता प्रेमी, स्वाभिमानी वीरवर महाराणा प्रताप की रानी थी। तत्कालीन अन्य रियासतों के राजा…
चन्द्रावती के राजा जैतसिंह की पुत्री अच्छन कुमारी ने पृथ्वी राज चौहान की वीरता और…
चित्तौड़ की रानी पद्मिनी रावल समरसिंह के बाद उसका पुत्र रत्नसिंह चित्तौड़ की गद्दी पर बैठा…
आज रविवार दिनांक २१ जुलाई २०२४ को जयपुर की क्षत्राणियों ने एक ऐतिहासिक आयोजन किया।…